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दिसंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उच्च रक्तचाप का इलाज

आजकल के परिवेश में बहुत सी बीमारियां अतिशीघ्रता से हमारे शरीर में अपना बसेरा बना लेतीं हैं। इन बीमारियों में से एक है उच्च रक्तचाप यानि हाई ब्लड प्रेसर। बढ़ते मानसिक तनाव के कारण आज मनुष्य को कई व्याधियों ने घेर लिया है। उन्ही में से एक अति कष्टदायी व्याधि है उच्च रक्तचाप। यह बिमारी आज एक ज्वलंत समस्या बन गयी है। प्रायः देखा गया है कि मानसिक तनाव के साथ ही शरीर में विभिन्न प्रकार की दूसरी विकृतियां भी पायीं जाती हैं। जिनमे उच्च रक्तचाप एक लक्षण के रूप में पाया जाता हैं। कारण-आमतौर पर उच्च रक्तचाप के बारे में कहा जाता है कि रस-रक्त का संवाहन करने वाली धमनियों में किसी प्रकार की बाधा उत्प्नन होने पर उच्च रक्तचाप की स्थिति पैदा हो जाती है। लक्षण-उच्च रक्तचाप के कारण सिरदर्द, भ्रम, ग्लानि, आँखों के सामने अँधेरा छा जाना, बेचैनी, धड़कनों का तेज चलना, चींटियों के चलने सा आभास होना आदि लक्षण उत्प्नन होतें हैं। इन परेशानियों से बचने के लिए निम्नलिखित घरेलू उपाय या नुश्खे अत्यंत उपयोगी हैं- नुश्खे-1-उच्च रक्तचाप में नारंगी का सेवन अत्यंत लाभ दायक होता है।उच्च रक्तचाप का रोगी दो-तीन दिन तक केवल

दमा अर्थात अस्थमा का इलाज

दमा भी एक जानलेवा बिमारी है। यह बीमारी सांस से सम्बंधित होती है। इस वजह से इसे सांस का रोग भी कहतें हैं अगर सांस की नली में कोई विकार पैदा हो जाये तो सांस लेने में परेशानी बढ़ जाती है और हमारी सांस फूलने लगती है। इसे दमा कहतें हैं। कारण-धूलभरे वातावरण में रहना, नम और शीत जलवायु, धुँआ लगना आदि श्वास रोग के प्रमुख कारण हैं। किसी बाहरी पदार्थ के सेवन से श्वसन संस्थान में एलर्जी हो जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है। लक्षण-सांस तेज चलती है और इसके साथ ही घबराहट की आवाज भी आती है। इस रोग में जब भी खांसी आती है तो खांसी के साथ ही बलगम भी बाहर आता है।सांस लेने में तकलीफ होती है और विशेष रूप से सांस छोड़ने में ज्यादा तकलीफ होती है। नाड़ी की गति अत्याधिक बढ़ जाती है, सांस छोड़ने में या लेने में इतनी फूल जाती है कि हांफने की स्थिति उत्प्नन हो जाती है। इस रोग में निम्न नुश्खे लाभदायक हैं- नुश्खे-1-काली मिर्च के पत्तों को छोटी मधुमक्खियों के शहद के साथ सेवन करने से बहुत फायदा होता है। 13 मिली शहद में 20 मिली तुलसीदल का रस निकालकर मिलायें और इसका सेवन करें। निश्चितरूप से लाभ होगा। 2-दमे का दौरा पड़ने

मधुमेह या डायबिटीज का इलाज

मधुमेह इन्सुलिन की कमी के कारण उत्प्नन शारीरिक क्रिया है। हमारे शरीर में पाचन संस्थान के कुछ नीचे बाई ओर एक पैंक्रियाज नामक ग्रंथि होती है। इसी ग्रंथि के कुछ विशेष कोष इंसुलिन नामक स्त्राव उत्प्नन करतें हैं। लेकिन जब इन्सुलिन के स्त्राव में कमी आ जाती है। तो रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है और मधुमेह उत्प्नन होता है। कारण-मधुमेह के प्रमुख कारण-तनाव, चिंता, मोटापा, धूम्रपान, खट्टे-मीठे पदार्थों का अधिक सेवन आदि। इन कारणों से पैंक्रियाज ग्रंथि विकृत हो जाती है। अतः रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है। शरीर के कोषों शर्करा का उपयोग नहीं हो पाता है। इससे रक्त में चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है और रक्तवाहिनियां सख्त और संकरी हो जाती है। इस प्रकार मधुमेह का दुष्प्रभाव रक्तवाहिनियों को कड़ा कर देता है। लक्षण-मूत्र की मात्रा व मूत्र विसर्जन की आवत्ति बढ़ जाती है। मूत्र में शर्करा भी निकलती है। इसका प्रमाण यह है कि जहां मूत्र का त्याग किया जाता हो। वहाँ चीटियाँ एकत्रित हो जतिन हैं। ऐसे रोगी को सिर में दर्द व भारीपन रहता है। त्वचा में रूखापन आ जाता है और फोड़े-फुंसियां भी अधिक निकलती हैं। घाव हो

नपुंसकता का इलाज

संभोग की प्रबल इच्छा होने पर और प्रिय स्त्री के निकट होने के बावजूद भी लिंग में शिथिलता के कारण जो पुरूष इस क्रिया में नाकाम रहता है। उसे नपुंसकता कहा जाता है और उस पुरूष को नपुंसक। इस रोग के इलाज के लिए निम्न नुश्खे उपयोगी हैं- नुश्खे-1-तुलसी के बीज और जड़ तथा क्रौच के बीज को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें। फिर प्रतिदिन सुबह एक चम्मच चूर्ण खाकर ऊपर से मिश्री मिला कर दूध पीयें। 40 दिन तक नियमित सेवन करने से समस्या का निदान अवश्य हो जायेगा। लेकिन इस बीच स्त्री सहवास से बचना चाहिए। 2-पंद्रह ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनायें। फिर इसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और इसे शीशी में भरकर रख दें। उसे 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह और शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। इससे नपुंसकता दूर होकर रति शक्ति में वर्द्धि होगी। 3-जंगली पालक के 100 ग्राम बीज का चूर्ण बना कर रख लें। दो से ढाई ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार एक कप दूध के साथ लें। डेढ़ महीने तक सात्विक भोजन व सात्विक आचार और विचार रखें। इससे नपुंसकता जड़ से दूर हो जायेगी। 4-बेल की 15 पत्तियां, 2 गिरी बादाम

खसरा का इलाज

खसरा एक संक्रामक रोग होता है। यह ज्यादातर बच्चों पर हावी होता है। इस रोग में पहले बुखार आता है फिर दूसरे या तीसरे दिन इसमें दाने नजर आने लगता है और फफोलों का रूप ले लेते हैं और फिर चौथे दिन से पपड़ी जमकर गिरने लगती है। यह एक सूक्ष्म विषाणुजनित रोग होता है। लक्षण-इस बीमारी में सबसे पहले जुकाम और सर्दी होती है। फिर छीकें आतीं हैं और सूखी खाँसी आती है। इसके बाद बुखार आने लगता है। आँख,मुँह फूले हुए एवं लाल दिखाई देतें हैं। ज्वर के चौथे दिन समस्त दिन शरीर एवं चेहरे पर बहुत छोटे-छोटे लाल दाने निकल आतें हैं। खसरे में पहले गले में खरास के साथ नाक से स्त्राव, छीकें आना, नेत्र लाल हो जाना, आंसू बहना, स्वरभंग, सिरदर्द, हाथ-पैर में पीड़ा, ज्वर (101 डिग्री फॉरेन हाइट से 140 डिग्री फारेनहाइट तक)। खसरा एक संक्रामक रोग है। इसलिए रोगी को अन्य लोगों के सम्पर्क से दूर रखना चाहिए वरना उन्हें भी खसरा होने की सम्भावना रहती है। इसके बचाव के निम्न नुश्खे उपयोगी हैं- नुश्खे-1-नीम, पित्त पापड़ा, पाठा, परवल के पत्ते, कुटकी, सफेद चंदन, खस, आँवला और अडूसा सभी को मिलाकर काढ़ा बनायें। इसमें शक्कर मिलाकर रोगी को पिला

अदरख का उपयोग

अदरख से तो सभी लोग परिचित होगें ही। यह वह वस्तु है जो लगभग सभी के रसोई घर में मौजूद रहता है।भोजन के पूर्व अदरख को कतर कर नमक मिलाकर खाने से खुल कर भूख लगती है। इसके सेवन से कफ और वायु रोग नहीं होतें हैं। गांवों में इसका प्रयोग घरेलू औषधि के रूप में किया जाता है। इसके निम्न प्रयोग किये जातें हैं- नुश्खे-1-ज्वर-अदरख और पुदीने का काढ़ा बना कर पीने से ज्वर उतर जाता है। 2-भूख न लगना-यदि भूख ठीक तरह से न लगती हो, पेट में वायु भर जाती हो, कब्ज हो। तो अदरख को बारीक काटकर नमक छिड़ककर 1-2 ग्राम खाने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है और अन्य सभी समस्यायें भी ठीक हो जातीं हैं। 3-खाँसी- अदरख का रस, नींबू का रस शहद सम भाग में लेकर उसमें पिपरी डालकर दिन में दो-तीन बार पीने से खाँसी मिटती है। अदरख के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी लाभ होता है। 4-नजला-जुकाम- अदरक को छीलकर बारीक काटकर कड़ाही में घी डालकर भून लें, फिर अदरक के बराबर वजन की चीनी की चाशनी में डालकर पकायें। जब खूब पक जायें। तो सोंठ, सफेद जीरा, काली मिर्च, नागकेशर, जावित्री, बड़ी इलायची, तेजपत्ता, पीपरी, धनिया, काला जीरा और वायबिंडन (प्रत्येक

पीपल का उपयोग

आदिकाल से ही वृक्षों में पीपल का स्थान सबसे ऊँचा है। वायुमंडल में सबसे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन पीपल के द्वारा ही उत्सर्जित होती है। स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए इसकी पूजा करतीं हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी पीपल के औषधीय गुणों का महत्व बतलाया गया है। इसका उपयोग निम्न कार्यो में महत्व पूर्ण हैं। नुश्खा-1-स्मरण शक्ति-पीपल के 5 पके हुए फलों को प्रतिदिन खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। इसके साथ ही शरीर भी पुष्ट और ओज युक्त होता है। इसी फल को खाने के कारण एक ऋषि का नाम पिप्पलाद पद गया था। जो बड़े ही तेजस्वी थे। 2-गर्भधारण-पीपल के सूखे फलों को कूट-पीसकर कपड़छन कर चूर्ण बना लें। जो स्त्रियां संतानरहित हों उन्हें इस चूर्ण की 5 ग्राम की मात्रा एक गिलास शुद्ध कुनकुने दूध के साथ नियमित सेवन करना चाहिए, गर्भधारण अवश्य होगा। केवल मासिक धर्म के दिनों में इसका सेवन बन्द रखना चाहिए। 3-श्वास रोग यानि दमा-सांस फूलने या दमा का दौरा पड़ने पर पीपल की सूखी छाल के चूर्ण की 5 ग्राम की मात्रा कुनकुने जल के साथ दिन में तीन बार लेने से काफी राहत मिलती है और धीरे-धीरे यह रोग शांत हो जाता है। 4-शीघ्रपतन-पुरुषों मे

लौंग का उपयोग

घरेलू उपयोग में आने वाले मसालों में लौंग से तो सभी परिचित ही होगें। लौंग का उपयोग विशेष रूप से मसाले को सुगन्धित करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग मुख शुद्धि के लिए तथा पान में भी किया जाता है। कफ, पित्त के रोगों, मूर्छा, वायु विकार, शूल, खांसी, श्वास, हिचकी आदि में भी लौंग का उपयोग होता है। आइये इसके उपयोगों के बारें में जानतें हैं- नुश्खे-1-ज्वर- लौंग और चिरायता दोनों को बराबर मात्र में लेकर जल के साथ पीसकर दिन में तीन बार पीने से ज्वर दूर होता है। 2-दांतदर्द-लौंग के तेल को दांतों में लगाने से कीड़े नष्ट हो जातें हैं और दर्द से मुक्ति मिलती है। 3-खांसी-लौंग, काली मिर्च और बहेड़ा समभाग में लेकर और उसमें इतने ही वजन का सफेद कत्था मिलाइये-इन सबको अच्छी तरह पीसकर बबूल की अंतछाल को के काढ़े में घोटिये फिर उसकी चने के बराबर गोलियां बनाइए। यह गोली दिन में दो-तीन बार मुख में रखकर चूसने से खांसी दूर हो जाती है। 4-मुख की दुर्गन्ध-लौंग को मुख में रखकर चूसने से सर्दी से विकृत गला ठीक हो जाता है और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होती है। 5-अजीर्ण-लौंग और हरड को उबालकर क्वाथ बनाये और उसमें थोडा सा स